भारतीय संस्कृति को विदेशी करते हैं प्रणाम, सनातन और गुरुकुल परंपरा को अपनाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे विदेशी कलाकार
भोपाल। भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है। इस परंपरा का निर्वाहन भारतीय कलाकार तो करते ही हैं, अब इसे विदेशी कलाकार भी अपना रहे हैं। शहर में कला के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं। कई ऐसे कलाकार हैं जो इन कलाओं को देश-विदेश तक में पहुंचा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका गुरुओं की रही है, अब उनके पास विदेशी शिष्य भी गुर-शिष्य पंरपरा को अपनाते हुए शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये विदेशी शिष्य हमारी भारतीय संस्कृति को प्रणाम करते हैं। गुरु के बराबर नहीं बैठते। उनके पैरों को अपने सिर पर रखते हुए शिक्षा ग्रहण करते हैं। आज इन गुरुओं से सैकड़ों विदेशी कलाकार शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
श्रीलंका की हिमाश ने गुरु-शिष्य परंपरा को अपनाया
अंतरराष्ट्रीय स्तर की कथक नृत्यांगना वी. अनुराधा शंकर के पास विदेश से भी शिष्याएं कथक सीखने आती हैं। हाल ही में श्रीलंका के हैड आफ द डिमार्टमेंट कथक विजुअल एंड परफार्मिंग आर्ट यूनिवर्सिटी कोलंबो की हिमाशा रंगसिंघे आई थीं और 15 दिन तक भोपाल घर में रहकर ही गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप कथक सीखा।वी. अनुराधा ने बताया कि हिमाशा ने श्रीलंका की होने के बावजूद भारतीय संस्कृति को अपनाया। हिमशा जितने भी दिन मेरे साथ रहीं हैं सिर जमीन में टिकाकर ही मेरे पैर पड़े। वो मेरे सामने जमीन पर ही बैठती थीं, कभी मेरे बराबर या मेरे से ज्यादा ऊंची सीट पर नहीं बैठीं। अभी तक मैंने 4500 शिष्यों को कथक की शिक्षा दी है। अभी उनके मार्गदर्शन में 100 शिष्य कथक की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
ध्रुपद संस्थान में 50 से अधिक विदेशी शिष्य
वरिष्ठ ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा के पास अमेरिका, कनाडा, यूरोप, जापान आदि देशों से समय-समय पर भोपाल आकर गुरु-शिष्य पंरपरा के तहत शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। इसके साथ ही देश के कोने-कोने से भी शिष्य शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने पहुंचते हैं। इसके साथ ही विदेशी कलाकार भारतीय सभ्यता और संस्कृति को भी अपना रहे हैं। उमाकांत बताते हैं कि ध्रुपद संस्थान में जब भी विदेशी शिष्य शास्त्रीय संगीत सीखने आते हैं तो कला और परंपरा की जानकारी प्राप्त करते हैं। वह हमारी गुर-शिष्य परंपरा से प्रभावित होते हैं। जो सम्मान देशी शिष्य गुरु को देते हैं वैसा ही सम्मान विदेशी शिष्य भी गुरु को देते हैं। वो गुरु के सामने पैर लंबा करके नहीं बैठते। गुरु के पास और सामने नहीं बैठते। अभी तक मेरे 50 से अधिक विदेशी शिष्य हैं।वह दो से तीन माह तक मेरे पास रूककर ही शास्त्रीय संगीत सीखते हैं। एक जापान की शिष्या श्रेया मोमको चार साल तक भोपाल में रहकर ध्रुपद की शिक्षा प्राप्त की। वह हाल में भोपाल से जापान गई है।
मशहूर सितार वादिका स्मिता नामदेव के अल्जीरिया के राजदूत हैं मुरीद
राजधानी की मशहूर सितार वादिका स्मिता नागदेव के शिष्य भारत के अलावा अल्जीरिया, फ्रांस, बेल्जियम, चाइना, हांग-कांग, सिंगापुर और यूरोप के कई देशों में हैं। लेकिन अल्जीरिया के राजदूत हासी उनके मुरीद हैं। उन्होंने इस सितार वादिका को अपना गुरु बनाकर सितार वादन की शिक्षा ग्रहण कीं। स्मिता बताती हैं कि जब मैं उनके बुलावे पर अल्जीरिया गई थी। तब उन्हाेंने भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा को अपनाते हुए शिष्य की तरह ही सम्मान दिया। वो राजदूत होकर भी मेरे लिए चाय और नास्ता बनाते थे। जबकि उनके घर में नौकरों की कोई कमी नहीं थी। वो हमारी भारतीय संस्कृति से बहुत प्रभावित थे। वह मुझे उस्ताद बोलते थे। आज भी जब भी मैं वहां कार्यक्रम करने जाती हूं तो वो मुझे वैसा ही सम्मान देते हैं। इसके अलावा कई शिष्य आनलाइन शिक्षा ग्रहण करते हैं। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति का सम्मान करते हैं।
गुरु पूजन कर श्रुति परंपरा से सत्रारंभ करेंगे शिष्य
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा और गुरु का बहुत महत्व है लेकिन आधुनिक शिक्षा के दौर में यह न के बराबर है। हालांकि नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद इसे पुन: स्थापित करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। इसके लिए कुछ संस्थागत नवाचार किए हैं केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, बागसेवनिया के निदेशक प्रो रमाकांत पांडेय ने। उन्होंने इस वर्ष से यह नियम बनाया है कि संस्थान से सेवानिवृत्त हो चुके गुरुजनों को गुरुपूर्णिमा के दिन विवि परिसर में आमंत्रित कर उनका पूजन और सम्मान किया जाएगा। उनके शैक्षणिक योगदान को शिष्यों के समक्ष याद किया जाएगा। इसके अतिरिक्त विवि परिसर स्थित यज्ञशाला में सभी गुरु, शिष्यों के कल्याण के लिए यज्ञ करेंगे। विवि का नया सत्र औपचारिक रूप से अप्रैल में आरंभ हो जाता है लेकिन पहली बार श्रुति परंपरा के अंतर्गत सत्र का प्रतीकात्मक शुभारंभ गुरु पूर्णिमा पर होगा। इस मौके पर शिष्यों को चारों वेद व उपनिषदों का एक-एक मंत्र और हर पुराण का एक श्लोक मंगलाचरण गुरुओं द्वारा सुनाया जाएगा, शिष्य जिसका दोहराव करेंगे। महोत्सव का आरंभ सुबह नौ बजे होगा, जोकि शाम चार बजे तक चलेगा। सुबह 11 बजे से व्याख्यान और कुलपति महोदय का अभिभाषण होगा।